ग़ज़ल
रौशनी आग है
आशिकों के लिए !
रात सोगात है
दिलजलों के लिए !
वो सलामत रहें
दिल दुखाएं सदा,
कर दुआ रोज तू
दुश्मनों के लिए !
प्यार आदत हमारी
नहीं छूटती,
हम बने ही नहीं
दायरों के लिए !
दर्द सारे जहाँ
का मुझे सोंप दो,
जान हाज़िर हमारी
गमों के लिए !
नेमतें है सनम
दे गया था हमे
गम जरूरी बना धडकनों के लिए !
गम उठाने को हम
हैं खड़े सामने ,
हर ख़ुशी दे
खुदा दोस्तों के लिए !
अन कही बात भी जान
जाएँ सभी ,
हो अलग इक जहाँ
शायरों के लिए !
यार पैगाम कितने
पड़े रह गये
था पता भी जरूरी खतों के लिए !
कांपते कांपते
मोन भी बोलता
शब्द मिलते नहीं
जब लबों के लिए !
छोड़ संजीव उस बे
वफा को भुला ,
आह इक छोड़ दे
बादलों के लिए !
@ संजीव कुरालीआ
01-14-2016
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