प्यार महोब्बत चिड़िया ऐसी,
जिसके सर पे दो दो चोंच !
अपना अपना करने वाले ,
मिलते ही मौका लेते नोंच !
आह : तो भरते तेरे दर्द की ,
होता अपनी कमर पे हाथ !
प्यार से आंसू पोछने वाले ,
पीठ के पीछे मारें लात !
भावनाओं का दाना खा खा ,
ये चिड़िया फल फूल रही है ,
बोली बदल सभी से बोले ,
हर दिल के अनुकूल रही है !
प्यार महोब्बत की ये चिड़िया,
कब किसको ,क्यूँ लेती नोंच ,
लाश बनादे, कब कोनसा रिश्ता ,
मिलती भी नहीं है कोई खरोंच !
इस चिड़िया के खाए लाखों ,
तस्वीरों में जड़े हुए हैं .
बुत्त बने हैं कितनों के ही ,
चोराहों में खड़े हुए हैं !
प्यार महोब्बत की ये चिड़िया,
हर मुख से गुणगान कराये ,
हर जिव्हा पे नाम इसी का ,
इसको नींद कभी ना आये ,
ना जाने किस पल डस ले ,
कब किस पे अमृत बरसाए !
दुनियां का हर इक रिश्ता ,
मानों जीभ में रहता लिपटा,
विष अमृत का खेल ये दुनियां ,
आदम आदम से है लिपटा !
कितनी ही चलती फिरती लाशें ,
इस धरती पे रेंग रही हैं ,
विष अमृत की बे रंग फुहारें ,
इक दूजे पे फेंक रही हैं !
झूठ कपट से भरी पोटली ,
हर धड के सर पे धरी है ,
ये चिड़िया खा गयी करोड़ों ,
फिर भी दुनियां हरी भरी है !
जिसके सर पे दो दो चोंच !
अपना अपना करने वाले ,
मिलते ही मौका लेते नोंच !
आह : तो भरते तेरे दर्द की ,
होता अपनी कमर पे हाथ !
प्यार से आंसू पोछने वाले ,
पीठ के पीछे मारें लात !
भावनाओं का दाना खा खा ,
ये चिड़िया फल फूल रही है ,
बोली बदल सभी से बोले ,
हर दिल के अनुकूल रही है !
प्यार महोब्बत की ये चिड़िया,
कब किसको ,क्यूँ लेती नोंच ,
लाश बनादे, कब कोनसा रिश्ता ,
मिलती भी नहीं है कोई खरोंच !
इस चिड़िया के खाए लाखों ,
तस्वीरों में जड़े हुए हैं .
बुत्त बने हैं कितनों के ही ,
चोराहों में खड़े हुए हैं !
प्यार महोब्बत की ये चिड़िया,
हर मुख से गुणगान कराये ,
हर जिव्हा पे नाम इसी का ,
इसको नींद कभी ना आये ,
ना जाने किस पल डस ले ,
कब किस पे अमृत बरसाए !
दुनियां का हर इक रिश्ता ,
मानों जीभ में रहता लिपटा,
विष अमृत का खेल ये दुनियां ,
आदम आदम से है लिपटा !
कितनी ही चलती फिरती लाशें ,
इस धरती पे रेंग रही हैं ,
विष अमृत की बे रंग फुहारें ,
इक दूजे पे फेंक रही हैं !
झूठ कपट से भरी पोटली ,
हर धड के सर पे धरी है ,
ये चिड़िया खा गयी करोड़ों ,
फिर भी दुनियां हरी भरी है !
3 comments:
संजीव जी.. आपकी सोच ही निराली है.. इतना उम्दा सोचना और लिखना आसान नहीं.. हर पंक्ति कुछ ना कुछ सार्थकता सिमेटे हुए है...
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
ये चिड़िया खा गयी करोड़ों ,
फिर भी दुनियां हरी भरी है !
-बहुत सटीक!!
दीपक जी बहुत बहुत आभार आपका निरंतर प्यार मुझे एक नई ऊर्जा प्रदान करता है!
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