Sunday, January 31, 2010

स्यासी इश्तिहार


स्यासी इश्तिहार ओढ़ने की ,
नाकाम कोशिश करता हुआ ,
नींद के नशे मे चूर ,
इश्तिहार को खींचता हुआ,
कि फट न जाये कहीं ,
खुद को थोडा समेटता हुआ ,
उलझे बाल, अर्ध नगन सा,
सूखा जिस्म,मिटटी सा रंग ,
पेट मे घुटने दबाये ,
एक बच्चा सो रहा था ......!

कभी पांव ढकता , कभी सर छुपाता,
गरीबी का ये भूखा तांडव ,सड़क किनारे हो रहा था
काश ये पढ़ना जानता ,इश्तिहार पे लिखा नारा ,
जिसपे लिखा था ...मैं हूँ गरीबों का सहारा ,
अब ना कोई सोयेगा भूखा,ये है हमारा पक्का वादा ,
हमें आपकी जरूरत है ,
बस अपना एक एक कीमती वोट ,
हमारी झोली मे डालो ,
हम तुम्हें खुशहाल बना देंगे ,



बच्चे को क्या मालूम, कि वो कितना बड़ा झूठ ,
बदन से लपेट रहा हा ,कभी ना मिटेगी भूख ,
जिस वो बदन से लपेट रहा है ,

क़ल इसे सुबह कोई ,ठोकर से उठा देगा ,
बिना संबोधन ,आधी नींद से जगा देगा ,
ये बच्चा फिर चल देगा, इस तलाश में ,
कि शायद कहीं फिर, कोई नेता आएगा ,
इश्तिहार लगाने का काम ,मिल जायेगा ,

ये बच्चा फिर टूटी फूटी दीवारों पे,
अपनी भूख चिपकायेगा ,
लेवी से लथ पथ हाथ लिए ,
फिर किसी सड़क के किनारे ,
बचे कुचे इश्तिहारों के विछोने पे ,
अर्ध नगन सा सो जायेगा ,

शायद कभी ना समझ पायेगा ,
ये बच्चा ,यूँ ही अध् खिला बचपन लिए,
सड़क किनारे ही बड़ा हो जायेगा ,
बिजली के खम्बे की तरह ,
कभी जलेगा ,कभी बुझेगा ,
मिटटी में मिटटी होता हुआ ,
आखिर मिटटी हो जायेगा !

शायद कभी ना समझ पायेगा ,
इन सयासी इश्तिहारों पे लिखे,
चमचमाते झूठ का मतलब ,



"कुरालीया "लाखों सवाल लिए ,
मन में उठते बवाल लिए ,
इश्तिहारों के इस मेले में ,
कब तक यूँ ही चिल्लाएगा ,
कभी ना ख़तम होने वाला ,
लम्बा सवाल ..........शायद ,
कभी हल ना कर पायेगा !

जो आज पढ़ा था ,कल मिलेगा नहीं ,
कल कोई और ,नया इश्तिहार ,
चिपकाया जायेगा ......... !



Saturday, January 30, 2010

चंद शेयर

ज़िकर दर्द का मैं ,कैसे कर दूँ !
जान , लफ्ज़ों के हवाले कर दूँ !

मैं कोई पीर ,पैगम्बर तो नहीं ,
जो सर काट , हथेली पे धर दूँ !

ह़क नमक का, अदा करते हैं ,
कैसे अश्कों मे, मिश्री भर दूँ !

जा पहुँचे ,जो तेरे ख्यालों तक ,
बता याद को , कोन से पर दूँ !

Tuesday, January 26, 2010

जय हिंद

सभी देश वासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं तथा सभी ब्लॉगर दोस्तों को जय हिंद !

Sunday, January 24, 2010

ज़ज्बा ..एक गीत वतन के नाम

वतन से प्यार का ज़ज्बा , हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

ना हों ज़ात के झगडे , ना धर्मों के हों बंटवारे ,
ऐ मालिक सभी का , बस एक ही रिश्ता बना दे !

भाषाओं से ना हो , पहचान किसी आदम की ,
एक भाषा प्यार की , जन जन को सिखा दे !

अपने अपने काम को , समझें सभी पूजा ,
रिशवत का दाग , हर एक चेहरे स हटा दे !

ना लाशों से बने ,सरहदें कहीं मुल्कों की ,
अमनों चेन से रहना , हर मन को सिखा दे !

शहीदों की सोगात ,आज़ादी सस्ती नहीं मिली ,
डर है की नई पीढ़ी , इसे यूँ ही ना गँवा दे !

आज़ाद माँ के सपूत ,नशों में गर्क हो रहे हैं ,
अँधेरा में घिर चुके जो , उन्हें रौशनी दिखा दे !

वत्तन की खातिर , ख़ुशी से जान भी दे दें ,
आन सलामत रहे वतन की ,एहसास दिलादे !

नारी मेरे वतन की, सीता भी है, झांसी भी ,
बस बेगानी सभ्यता से , थोडा सा बचा दे !

चाँद को छूने वाला दिल, क्या नहीं कर सकता,
मेरे हर भारत वासी को , नित नया हौसला दे !

हम हैं हिन्दुस्तानी , हमारी शान हिन्दुस्तान ,
हमारी आन है तिरंगा ,हर जान को सिखा दे

'कुरालीया ' क़र्ज़ ,इस धरती का चुकाना लाजिम है ,
बची हर सांस अपनी ,बस राह में वतन की लगा दे !


वतन से प्यार का ज़ज्बा, हर दिल में जगा दे !
वो शमा भगत सिंह वाली , रग रग में जला दे !

Tuesday, January 19, 2010

ग़ज़ल




ये इश्क का अजगर ,निगल गया लाखों ,
मगर , कमी न आयी , कहीं दीवानों मे !

बिन जले समझा है ,न कोई समझेगा ,
कैसा जनून है , मरने का परवानो मे !

अजब ये आग है ठंडी, धुआं नहीं करती ,
मज़ा आता है बस , जलने जलाने मे !

बीमारे इशक को, दरवेश कहूं या दीवाना ,
शिवरी को उम्र लगी , बेर खिलाने मे !

कहीं 'शिव' को लगाता है, रोग विरहा का ,
सयाही दर्द की, भरता है कलमदानों मे !


कच्चे घड़े की , कश्ती पे तेरता है कहीं,
दफ़न होता है कहीं , रेत के तूफानों मे !

'कुरालीया' बस, इतना ही समझ पाया ,
मिटता रहा है , महबूब को मनाने मे !

Monday, January 18, 2010

ग़ज़ल


हर हालात को , पुख्ता हल की ज़रुरत है !
फ़ेसला तय है , क्या कल की ज़रुरत है !

तंगिए दौर , पुर जोर बुलंदी पे है इब्ला ,
आवाम को , बस हलचल की ज़रुरत है !

इल्म भरपूर है सबको, अमल से परहेज़,
मशरूफ नज़रों को ,फुर्सत की ज़रुरत है !
दीवानगी आज भी , कम नहीं है लैला की ,
जो पहुँचे दिल तक ,उस कद की ज़रुरत है !

रहवर खुद भटके हुए , रास्ता बता रहे हैं ,
जो रौशनी बक्शे , मुर्शद की ज़रुरत है !

हर फेसला कल पे , क्यूँ टाला जा रहा ?
'कुरालीया ' किस कल की ज़रुरत है !

Friday, January 15, 2010

ग़ज़ल


शायद कोई, दोस्त मिल जाये कहीं ,
रकीबों से भी, हाथ मिलाने लगा हूँ !

गुलों की चाल से , वाकिफ हूँ अब ,
गुलदानों में , कांटे सजाने लगा हूँ !

हर सवाल पे ,खामोश मुस्कुराता हूँ !
ढंग दुनियां का , आजमाने लगा हूँ !

दिल के धोखे , मैं अब नहीं खाता ,
हर एक चोट पे , गुनगुनाने लगा हूँ !

फरेब आखिर , सिखा दिया मुझको ,
अश्कों को , तिनका बताने लगा हूँ !









Sunday, January 10, 2010

समाज


समाज क्या बोले आज !
समय और आज का राज !

रिवाजों की रिवायतों में,
दफ़न होता आज का संवाद !
समाज क्या बोले आज !

दुल्हन की आँखों में आंसू ,
बाबुल से विछ्ड़ने के हैं कारण ,
या कोइ और है राज !
समाज क्या बोले आज !

हर उम्र खा रही अशलीलता ,
किस को, किस से आये लाज !
समाज क्या बोले आज !

सिकुड़ रही सभ्यता पर ,
जिसको बहुत है नाज ,
समाज क्या बोले आज !



Saturday, January 9, 2010

आंसू


आँख से टपका हुआ , इक़ बे रंग कतरा ,
तेरे दामन की पनाह पाता ,तो आंसू होता

बात बात पे जो बहता रहा , वो पानी था ,
बिना ही बात जो आता , तो आंसू होता !

वस्ल में जागती आँखें ,पथरा गयी होतीं ,
पलक झपकते ही आता ,तो आंसू होता !

नींदों में ख़लल होता , जो मेरे ख्यालों का ,
आँख में ठहर ना पाता , तो आंसू होता !

आह ठंडी लिए खुलतीं , जो सुर्ख आँखें ,
होंठ भी फर्कने से आता , तो आंसू होता !

दर्द हो जाता दफ़न , बस हंसी ठहाकों में ,
'कुरालीया ' समझ ना पाता तो आंसू होता !

Saturday, January 2, 2010

नवज़ात


एक नवज़ात की ज़ात क्या है ?
धर्म क्या है , औकात क्या है !

रोना ,सोना , विछौना भिगोना ,
छाती से दो बूँद ,दूध दोहना ,
माँ से बड़ा ,जज़्बात क्या है
एक नवज़ात की जात क्या है !


ना भेद ,ना भाव ,ना द्वेष ,ना दाव
नरम ,नाज़ुक ,निरोल ,बे दाग
वो क्या जाने , हालात क्या है !
एक नवज़ात की जात क्या है !


ना छल, ना बल ,ना कोइ दल ,
भाषा ,आशा ,ना कोई निराशा ,
ना जाने शय क्या ,मात क्या है!
एक नवजात की जात क्या है !

ना दर , ना जर ,ना कोई घर ,
न तर्क ,ना अर्थ , ना कोई फर्क ,
दिन है क्या, और रात क्या है !

एक नवजात की जात क्या है !
ना फायदा , ना कोई कायदा ,
ना वायदा , ना कम , ना जायदा ,
वो ना जाने , आघात क्या है !

एक नवजात की जात क्या है
ना शर्म ,ना मर्म ,ना कोई कर्म ,
ना स्वाद ,विवाद , ना कोई राज ,
पहल है क्या, और बाद क्या है !

एक नवजात की जात क्या है !
ना अर्ज़ ,ना मर्ज़ ,ना खुदगर्ज़ ,
ना फ़र्ज़ ,ना क़र्ज़ ,ना कोई गरज ,
वो ना जाने , सोगात क्या है

एक नवज़ात की जात क्या है ,
धर्म है क्या , औकात क्या है !






Friday, January 1, 2010

ग़ज़ल


ये बात झूठ है, कि सब झूठ है ज़माने में !
नहीं फरेब , किसी बच्चे के मुस्कुराने में !!

क्या कभी चाँद भी रूठता है , कहीं सूरज से,
फासला तय ही सही , दोनों के आने जाने में!

आराम खुद ही , सदा दिल को गुदगुदायेगा ,
लगा समय , किसी बजुर्ग के पांव दबाने में !

समझ पैगाम , महोब्बत का नाम है देना ,
फलों का मोल छिपा ,शाख के झुक जाने में !

'कुरालीया ' सब कुछ ,बिखर ना जाये कही ,
लगा ना देर किसी, रूठे को कभी मनाने में !