स्यासी इश्तिहार ओढ़ने की ,
नाकाम कोशिश करता हुआ ,
नींद के नशे मे चूर ,
इश्तिहार को खींचता हुआ,
कि फट न जाये कहीं ,
खुद को थोडा समेटता हुआ ,
उलझे बाल, अर्ध नगन सा,
सूखा जिस्म,मिटटी सा रंग ,
पेट मे घुटने दबाये ,
एक बच्चा सो रहा था ......!
कभी पांव ढकता , कभी सर छुपाता,
गरीबी का ये भूखा तांडव ,सड़क किनारे हो रहा था
काश ये पढ़ना जानता ,इश्तिहार पे लिखा नारा ,
जिसपे लिखा था ...मैं हूँ गरीबों का सहारा ,
अब ना कोई सोयेगा भूखा,ये है हमारा पक्का वादा ,
हमें आपकी जरूरत है ,
बस अपना एक एक कीमती वोट ,
हमारी झोली मे डालो ,
हम तुम्हें खुशहाल बना देंगे ,
बच्चे को क्या मालूम, कि वो कितना बड़ा झूठ ,
बदन से लपेट रहा हा ,कभी ना मिटेगी भूख ,
जिस वो बदन से लपेट रहा है ,
क़ल इसे सुबह कोई ,ठोकर से उठा देगा ,
बिना संबोधन ,आधी नींद से जगा देगा ,
ये बच्चा फिर चल देगा, इस तलाश में ,
कि शायद कहीं फिर, कोई नेता आएगा ,
इश्तिहार लगाने का काम ,मिल जायेगा ,
ये बच्चा फिर टूटी फूटी दीवारों पे,
अपनी भूख चिपकायेगा ,
लेवी से लथ पथ हाथ लिए ,
फिर किसी सड़क के किनारे ,
बचे कुचे इश्तिहारों के विछोने पे ,
अर्ध नगन सा सो जायेगा ,
शायद कभी ना समझ पायेगा ,
ये बच्चा ,यूँ ही अध् खिला बचपन लिए,
सड़क किनारे ही बड़ा हो जायेगा ,
बिजली के खम्बे की तरह ,
कभी जलेगा ,कभी बुझेगा ,
मिटटी में मिटटी होता हुआ ,
आखिर मिटटी हो जायेगा !
शायद कभी ना समझ पायेगा ,
इन सयासी इश्तिहारों पे लिखे,
चमचमाते झूठ का मतलब ,
"कुरालीया "लाखों सवाल लिए ,
मन में उठते बवाल लिए ,
इश्तिहारों के इस मेले में ,
कब तक यूँ ही चिल्लाएगा ,
कभी ना ख़तम होने वाला ,
लम्बा सवाल ..........शायद ,
कभी हल ना कर पायेगा !
जो आज पढ़ा था ,कल मिलेगा नहीं ,
कल कोई और ,नया इश्तिहार ,
चिपकाया जायेगा ......... !