Tuesday, December 22, 2009

ग़ज़ल



मौला दर्द ज़माने भर का, ग़र मुझको मिल जाये तो ,
क्या बिगड़ेगा तेरा या रब, हर चेहरा खिल जाये तो !

लाशें खा खा थक गई होगी, ये धरती बहुत पुरानी है,
हर रिश्ते को जीने का, अंदाज़ नया मिल जाये तो !!

रंगों का बाज़ार ये दुनिया , न जाने क्यूँ वीरान लगे ,
बे रंग ख्यालों से आलम ,निजात जरा सी पाए तो !

न शाख से पत्ता बिछड़े , न आंधी तोड़े डाल कोई ,
मुरझाये हर गुल को , खोयी महक मिल जाये तो !

सदियों पुराने खेल घिनोने , ज़ात मज़हब दोहराए न,
दर्द बेगाना जाने ऐसा , दिल सबको मिल जाये तो !

दर्द दिलों में रहे न बाकी , न आँख कहीं नमी खाए ,
गम खा के हंसने वालों को, थोड़ी ज़ुबा मिल जाये तो !

बेबसी 'कुरालिया' बयाँ करे , क्यूँ सबका यूँ दर्द सहे ,
मौला तेरी रहमत सबको , इक जैसी मिल जाये तो!

1 comment:

AKHRAN DA VANZARA said...

Congratulations..
KURALIA JI...